मन रे जुग सपनो है भाई......
जावता ने टेम नी लागे सपनो बिखर जाई- टेर
पल-पल करता मिंट होवे मिंट-मिंट में घड़ी
आठपोर दिन रात में टेम निकळे खरी
ओ जुग सपनो भयो मन मानतो सरी रे भाई
मन मानुस तन पायो आठोपोर दिन-रात में 
बेकार टेम गमायो मोनके जनम रे माई
फेर नहीं आवे पाछो मन मान तो सरी रे भाई
चार दिन री चमक चोनणी फेर रात अंधारी आवेला
ओ जुग सपनो भयो मन मानतो सरी रे भाई
आज काल में सब दिन बीते, आज काल निराळा है
सतगरु से सार समज हो जासी भव पार रे
आगे मन मान तो सरी रे
सपनो झुठो भयो ओ जलम कियो सपने में गमावे रे
भगत दीपाराम हिरदे लकिया, रामप्रकासजी सतगरु समजावे रे।