पांच तत्व तीन गुण नाही 2, काळ जाळ से न्यारा
सात दीप नव खण्ड नाही माया साधी सारा
संतो सब निर्भया निरधारा।
धरा, गिगन नहीं पवन नहीं पाणी 
नहीं सूर संसारा रे संतो, सब निर्भया निरधारा।
वाणी खाणी मुझ में नाही, नाही गरु अवतारा
खुद ही नाडी-नाड में नाई, नाड गूड से न्यारा रे संतो।
पीव री ताप नी तापे मुझको, जनम मरण नी ज्यारा
तब तक तुर्रिया पथ में नाही, घर असरते तारा रे संतो।
धरा, गिगन नहीं पवन नहीं पाणी 
नहीं सूर संसारा रे संतो, सब निर्भया निर आधारा।
बास अबास सब मन की कल्पना, दूख से तन खुद न्यारा
धनादास पारख निज आ सोई, दुनिया दिखे पारा ओ संतो।
धरा, गिगन नहीं पवन नहीं पाणी
नहीं सूर संसारा रे संतो, सब निर्भया, निर आधारा।