मत ले जीवड़ा नींद हरामी, नींद आळसी
थोड़ा जीवणे रे खातर कांई सोवे।
खुद रे घर में जीवड़ा घोर अंधेरो
पर घर दिवला कांई जोवे।
इण काया में बीरा खान हिरा की
पर कांकरी ने काई रोवे रे जीवड़ा
थोड़ा जीवणे रे खातर कांई सोवे
काई सोवे रे जीवड़ा,जमारो मिट जावे।
इण काया में बीरा पेड़ चन्दण रो
बीज बवळिये रा काई बोवे जीवड़ा।
इण काया में बीरा समंद भरियोड़ा
कादे में कपड़ा कांई धोवे रे जीवड़ा
थोड़े जीणे रे खातर काई सोवे।
केहत कबीर साहिब ने रट ले
अंत समे में पड़ियो ई रोवे
मत ले जीवड़ा नींद आळसी
थोड़ा जीणे रे खातर काई सोवे।
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