चालो म्हारी रेल भवानी, संतो रे हाला देस
जावा हारा-हेर रे, चालो म्हारी रेल भवानी संतो रे हाला देस।
सतगरु छोडी डारी, होई जगर री प्यारी
अब चलो बैठ नर-नारी रे, अरे सिंवरु देस गणेस
चाला संता रे देस।
सतगरु मिळिया अतिथि, गजब बजावे सिटी दुनिया हो गई सिधी
गुरासा रे सम्मान, चालो म्हारी रेल भवानी।
हरिजन नन्दी आई, कागद गांव सूं चाली
केहत कबीरसा राम, थारा मिटजा करम-कळेस
हाला संता रे देस।
थने गावे ओ दासी, जटे अमरापूर रो वासी
अबे फेर जनम नहीं पासी, गुरुसा रे देस
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