मन रे, सारो जग लोभ में लागो
म्हारो मन लागो सत सबदा में मन रे...…
मन रे आ देह थिर नही, काची काया है मेरा भाई
मन रे आ देह राखी रेवे रे नहीं रे
ज्यो ढाळ में नीर जावे, जियो चली जाई रे।
मन रे, ओ जग सपनो है रे, सार सपने रो लक मेरा भाई
बिलळी रे झबके मोती पोयलो ओ जग सपने ज्यो जाई
मन भरोसो कियो बैठो कांई
ओ तन बटाऊ पावणो, जासी ढाळ ढळे ज्यों पोणी
मन फूलो मन भूलो मन समझो सार
अबे सतगरु मिळगा अवतारी
भगत दीपाराम रामप्रकास जी रो चेलो सत भगति में खेलो।
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