घर रे आगे घर रे लारे आवो सब मिळ रूंख लगावां
फल, सब्जी अर फूल लगावां, आवो सब मिळ ब़ाग लगावां।
हरियो-भरियो ब़ाग लगाके जन-जन रो मनड़़ो हरसावा,
हुवे वायुमण्डल सुध्द आपणो आवो रे मिळ ब़ाग लगावां।
इण हरियाला रूखों रे कारण बादळ स़लो मेह बरसावे,
स्वच्छ ब़ायरो हुवे देस में आओ रे सब मिळके ब़ाग लागावां।
फुटरा दरखत रे झुरमुट में पांख-पखेरू गीत स़ुणावे,
आपा बैठा ठण्डी छियां आवो रे सब मिळर ब़ाग लगावां।
रूखोंऊं ई है पार आपणो जणो-जणो आ बात पुकारे,
रूख आपणा साथी है आओ रे सब मिळ ब़ाग लगावां।
रूख धरा री सोभा है इण में चोखी खाद लगावां,
इण रूखों ने स़ीच-स़ीच ने आवो रे सब मिळ बाग लगावां।
हर चोराये, हर गलियारे रूखों री लंगार लगावां,
हरित क्रान्ति है नारो सब रो आवो रे सब मिळ बाग लगावां।
धरती रे प्यारे जंगल में मोर-कबूतर नाचे गावे,
मंद-मंद मेवड़ियो बरसे आवो रे मिळ बाग लगावां।
बोलो सारा रूख लगाके आवो काळ ने आगो भगावां,
ठीक टेम पर बिरखा होवे आओ रे मिळ बाग लगावां।
रुके प्रदूसण इण रूखो सूं जन-जीवन ने आछो बणावां,
देश रो अन-धन हुवे सवायो आओ रे मिळ बाग लगावां।
घर रे आगे घर रे लारे आओ रे मिळ रूख लगावां,
फल, सब्जी अर फूल लगावां आओ रे सब मिळ बाग लगावां।