सतगरु आगे विणती करुं, चरणो में राखो हाजरी भरु।टेर
थे स़तगरु दाता रा देव हो दयालु देवो तो सरी
अणभो अमोल धन हिड़दे हेत रळावो तो सरी।
भाग भव पुरब ले रा जद, मैं स़तगरु सामरत पाया
मिळ गिया जद अवतारी आणंद ऊर छाया।
अवतारी केऊ जोऊ अपार स़तगरू जी रे रुप आया
फकड़ रुप कर म्हाने मिळिया गुरु अवतारी।
अवतारो रा भेद अपार, स़तगरुजी रे रुप आया
म्हाने स़तगरु मिळिया रामप्रकास जी दाता रा
भगत दीपाराम ने करिया भव पारा।
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