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भरमजाल

गिया जकां रा टेम निकलग्या रिया जकां रा भेम निकळग्या।
दुनियां तो मैदान निकलगी दुनियांदारी गेम निकळग्या।
इयो हाथों रा मैल निकलग्या उण हाथों रा खेल निकळग्या।
रिश्ता नाता फेल निकलग्या सब पईसां रा खेल निकळग्या ।
कोई माल लूट अर लेग्या कोई खाली हाथ निकळग्या ।
लारे रेग्या साथ निकलग्या लोग बताकर जात निकळग्या ।
केई तो भूखा ही रेग्या केई काठा धाप निकळग्या ।
घणों भरोसो करता हा बे आस्तीन रा सांप निकळग्या ।
जिणं सुं दवा दरद री मांगी बे खुद ब़ैमार निकळग्या ।
जिणरे आगे हाथ फेलायो बे खुद ही कंगाल निकळग्या ।
खरा समझकर ल्याया हा बे पूरा खोटा माल निकळग्या ।
जिणरो हाथ पकडकर चाल्या बे ही धक्को मार निकळग्या ।
पुन्याई सुं भारी खुदरा पूरब जनम रा पाप निकळग्या ।
मां किरपा घर माथे लिखवायो घर बारे मा बाप निकळग्या ।
पाक्योड़ी पर पाणीं बरस्यो उबी फसल बरबाद निकळगी।
सीधा सादा मा बापां रे बिगड्य़ोडी औलाद निकळगी ।
खुद नें खुदा बतांता हा बे आखिर में मक्कार निकळग्या ।
तिवाडी री आंख खुली तो घर में ही गद्दार निकळग्या ।

Literature Type

  • Poem

मारवाड़ी पंचाग

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