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मन री निकलगी

लिख लिख कर म्हें लिखतो रियो 
लिखतां लिखतां सांस निकलगी ।
म्हैं सीधो सरगां में पूग्यो
कविता बाईपास निकलगी ।
कोई तो तुकबंदी निकली
कोई कविता खास निकलगी
म्हें कागद रो नास समझियो
बा म्हारो विस्वास निकलगी ।
म्हनें लोग समझियो झूठो
कविता म्हारी साच निकलगी ।
असली चेहरा देखणं खातर
कविता म्हारी काच निकलगी ।
म्हें पतझड में झडतो रियो
कविता तो मधुमास निकलगी ।
राधा रे पगा री पायल
कानूडा की रास निकलगी ।
म्हे तारां नें रियो ताकतो
कविता तो अकास निकलगी ।
आडंबर अर कूड़ कपट रो
कविता करती नास निकलगी ।
स़ोच स़ोचकर लिखतां लिखतां
सुख सुं सारी रात निकलगी ।
म्हारी कलम और कविता में
म्हारा मन री बात निकलगी ।
म्हे पग पग पर रियो हारतो
कविता म्हारी जीत निकलगी ।
कविता रा आखर आखर में 
नवीं परित री रीत निकलगी ।
घाव सूखग्या टीस निकलगी
म्हारा मन री रीस निकलगी ।
बद-दुआ देवणं आलां रा
मुंडा सुं आसीस निकलगी ।
भावां नें अभिव्यक्ति मिलगी
बात बात में बात निकलगी।
बंजर धरती हरी होयगी
ऐड़ी आ बरसात निकलगी ।
किताबां रो हुयो विमोचन
फोकट में छ: सात निकलगी ।
करामात कवितावां करगी
बाकी हाथ्यूं हाथ निकलगी ।
तिवाडी मन री निकलगी
म्हारा मन री आस निकलगी ।
म्हे सीधो सरगां में पूग्यो
कविता बाई पास निकलगी ।

Literature Type

  • Poem

मारवाड़ी पंचाग

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