गोमद गति सदा घट माई
हरि मिळिया, पार हो जाई (टेर)
टेम समे री गति कोई नी जोणे
जारा सतगरु स़ाचा बो ही पैचाणे।
रोम नाम रो रंग जद राचण लागो
स़ोच-स़ोच लके मन पाचो।
हरि राखे छतर छिया
हरि री सता सतगरुजी रे माया।
सतगरु, हरि में अन्तर नहीं
सुगरा नर सार लके घट माई।
म्हारा सतगरु सायब रुप माया
म्हे लीगन लगाय हिरदे पाया।
सतगरु दीप प्रकास घट में जगाया
म्हारा सतगरु रामप्रकास जी अवतारी आया।
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