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कुवा में भांग

पींदे में खाडो है अर पोणी में नाव खड़ी है ।
स़ेंठा रेजो मिनकों कुवा में भांग पड़ी है।
स़पना तो चोखा है पण जाग्या ही पतो पड़ेला।
गरीबों री भूख तो भाग्या ही पतो पडे़ला।
पोतड़ियो में पूत बिगड़ग्या बे किकर सुधरेला।
भूंगळ्योऊं पूंछ कुत्ता री स़ीधी कियां हुवेला।
कांई होवेला जद जोणोला बातों तो मोटी-मोटी है।
स़ेंठा रेजो मिनकों कुवा में भांग पड़ी हैं ।
केई सालों रो कचरो है थोड़ा सालों री टेम है ।
फ्रेमो बदळिजे है फोटुवो तो स़ागेई है ।
भस्टाचार रो भूत तो भाग्या ही पतो पड़ेला।
छपरा हेटे बैठा हां फाट्या ही पतो पडेला।
नीचे सुं ऊपर ताणीं जुडियोड़ी कड़ी कड़ी है ।
स़ेंठा रेजो मिनकों कुवा में भांग पड़ी है ।
भ्रस्टाचार रा पाट है मंहगाई री चक्की है ।
तो भी ऐ दाळा खावे है भारत री जनता लक्की है ।
किकर बारे आवेला कादा में भै खड़ी है ।
स़ेंठा रेजो मिनकों कुवा में भांग पड़ी है।
मेंगाई मारयो जावे है सूतो री नींद उड़ादी है ।
नेता तो निरोगा है अर पब्लिक पड़गी मांदी है ।
नोकरियो रा टोटा है निकम्मो री फौज खड़ी है ।
स़ेंठा रेजो मिनकों कुवा में भांग पडी हैं ।
तिवाडी कद रो केवे है थे दाळा कांदा छोडदयो।
बरत करो अर मुगती पावो खाणां वाणां छोडदयो।
घर में बेठा भजन करो अर आणां जाणां छोडदयो।
बेंकुठ्यां में जाया वो मोकाण जाणां छोडदयो।
तिवाडी सपनां देखे है म्हारो भी छपरो फाटेला।
भला मिनकों सू जनता नें आस बड़ी-बड़ी है ।
स़ेंठा रीज्यो मिनकों कुवा में भांग पड़ी है।

Literature Type

  • Poem

मारवाड़ी पंचाग

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